Sunday, May 3, 2009

शेर - 31

कभी हम चाहते कुछ हैं, हो कुछ और जाता है
जतन की भूख है ऎसी, अमन को भूल जाते हैं ।

8 comments:

"अर्श" said...

khub kahi aapne ye she'r bhi bahot umdaa....


arsh

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

हर सप्ताह रविवार को तीनों ब्लागों पर नई रचनाएं डाल रहा हूँ। हरेक पर आप के टिप्प्णी का इन्तज़ार है.....
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मुझे यकीन है आप के आने का...और यदि एक बार आप का आगमन हुआ फ़िर..आप तीनों ब्लागों पर बार -बार आयेंगे.........मुझे यकीन है....

हरकीरत ' हीर' said...

कभी हम चाहते कुछ हैं, हो कुछ और जाता है
जतन की भूख है ऎसी, अमन को भूल जाते हैं ।

बहुत खूब.....!!

mark rai said...

कभी हम चाहते कुछ हैं, हो कुछ और जाता है
जतन की भूख है ऎसी, अमन को भूल जाते हैं..waastaw me aisa hi hota hai..

शोभना चौरे said...

bhut khub
bhut strong abhivykti.

Alpana Verma said...

sach likha hai...sara arth antim pankti mein hi samaya hai..

sandhyagupta said...

कभी हम चाहते कुछ हैं, हो कुछ और जाता है
जतन की भूख है ऎसी, अमन को भूल जाते हैं ।

Sundar.

दिगम्बर नासवा said...

लाजवाब शेर है........