"चलो अच्छा हुआ, जो तुम मेरे दर पे नहीं आए / तुम झुकते नहीं, और मैं चौखटें ऊंची कर नही पाता !"
Saturday, February 28, 2015
Thursday, February 19, 2015
होड़-बेजोड़ ...
बिलकुल नशा नहीं है आँखों में उसके जालिम
वर्ना कलम उठाने की जुर्रत न हमसे होती ??
… कुल्फियों, फुल्कियों व किताबों में होड़ है
देखते हैं दिल्ली, कौन कितना बेजोड़ है ?
...
देख के, वो सियासत मेरी जल-भुन रहा है 'उदय'
जिसने खुद की हुकूमत में बस्तियाँ जलाईं थीं ?
…
सच ! न टोपी, न टीका, न माला, न टोटके
हम कैसे मान लें 'उदय', कि तुम ज्ञानी हो ?
....
लेबल:
शेर
Monday, February 16, 2015
दुःख और पीड़ा ...
दुःख और पीड़ा दोनों उनकी जायज है
टूट रहा है पहाड़ घमंड का
जो न ऊँचा था, न विशाल था,
पर, लगता था उनको
पर, लगता था उनको
कि -
वे ऊँचे हैं, बहुत बड़े हैं,
और-तो-और …
वो कहते-फिरते भी थे
कि -
उन-सा ऊँचा कोई नहीं संसार में,
पर, अब, …
टूट रहा है, बिखर रहा है पहाड़ घमंड का
जो न ऊँचा था, न विशाल था, टूट रहा है, बिखर रहा है पहाड़ घमंड का
दुःख और पीड़ा दोनों उनकी जायज है ?
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सत्यामृत
Sunday, February 15, 2015
Wednesday, February 11, 2015
Monday, February 2, 2015
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