Saturday, November 3, 2012

नासूर ...


बात इत्ती-सी, न जाने क्यूँ, हम समझ नहीं पाए 'उदय' 
कि - बदले में ...... उनकी, हमसे कोई चाहत नहीं थी ?
... 
अब क्या कहें, हम उनकी बेरुखी पर 
कल ही तो, वो वादा कर के गए थे ? 
... 
ऐंसे नहीं न सही, वैसे ही सही 
बस, एक बार तुम हाँ तो कहो ?
...
सच ! वक्त रहते, बयां कर दो, तुम जज्बात दिल के 
कहीं ऐंसा न हो, कसक दिल में ... नासूर बन जाए ?

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