बात इत्ती-सी, न जाने क्यूँ, हम समझ नहीं पाए 'उदय'
कि - बदले में ...... उनकी, हमसे कोई चाहत नहीं थी ?
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अब क्या कहें, हम उनकी बेरुखी पर
कल ही तो, वो वादा कर के गए थे ?
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ऐंसे नहीं न सही, वैसे ही सही
बस, एक बार तुम हाँ तो कहो ?
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सच ! वक्त रहते, बयां कर दो, तुम जज्बात दिल के
कहीं ऐंसा न हो, कसक दिल में ... नासूर बन जाए ?
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