तू आ, या ना आ, हमें क्या !
वैसे भी, हमें नींद ... अब आती नहीं है ?
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गर, सर टेकना जरुरी था, किसी दरगाह में टेक लेते
कम से कम गद्दारों का हौसला आफजाई तो न करते ?
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न जाने ये किसकी नजर लगी है मेरे मुल्क पे 'उदय'
चवन्नी-अठन्नी की तरह, लुप्त हो रहा ईमान है ??
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जी तो चाहता है हमारा भी समेट लें धन-दौलत
पर, बेईमानी के लिए दिल हामी नहीं भरता ??
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काश ! बिचौलियेपन का भी ... कोई पैमाना होता 'उदय'
तो शायद, मंत्री, मुमंत्री, प्रमंत्री, रेस में आगे नहीं होते ?
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