काश ! उस्तादी शक्ल में, हमें 'सांई' मिल गए होते
तो दो-चार दांव में ही, हम सिकंदर हो गए होते !!!
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ये जुनून-ए-इश्क है यारा
कभी पानी सा लगता है, कभी शोला सा लगता है !
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ज्यों ही सत्ता ने कहा, ये कतई लूटमार नहीं
लोग यूँ उठ के चले, जैसे कुछ देखा ही नहीं !
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