जी तो चाहता है हमारा भी, प्यार में डूब जाने को
मगर अफसोस, कहीं कोई समुन्दर नहीं दिखता ?
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अभी तक तो मुडेर पे, कोई बैठा ही नहीं है
मगर फिर भी, कहीं पे चाँव-चाँव, तो कहीं पे काँव-काँव है ?
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जिन्ने झूठी मुहब्बत पे, सच्ची दोस्ती कुर्बान की थी
उफ़ ! आज उनके जनाजे को, चार काँधे नहीं मिले !!
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हम गरीब हैं पगड़ी, कोई हंसी के चुटकुले नहीं
जो तेरे बत्तीसी आंकड़ों पे तालियाँ गूँज जाएं ?
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कदम कदम पे भरम हो जाता है हमको
किसी न किसी से, तेरी चाल या अदाएं मिल ही जाती हैं !
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