Sunday, March 25, 2012

चेला ...

इस मायावी संसार में
कदम रखते ही
हर किसी ने
हाँथ पकड़-पकड़ के
हमें चेला बनाना चाहा था
बड़ी मुश्किल से बचते-बचाते
यहाँ तक पहुंचे हैं 'उदय'
कहीं ऐंसा तो नहीं
कुछ ऐंसा ही
तुम्हारा भी ईरादा है ?

2 comments:

देवेन्द्र पाण्डेय said...

:-)
एक गुरू सब चेरा।

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

बिन गुरु ज्ञान कहाँ से पाऊँ...

सुंदर रचना.