Friday, December 23, 2011

अड़चनें ...

मुझे जब जब कोई लड़की भाई
जब जब उसने मेरी ओर
या मैंने उसकी ओर बढ़ना चाहा
अड़चनें आ गईं
क्यों आईं, किसलिए आईं, अड़चनें !
ये तो मैं नहीं जानता !!

पर, हाँ, इतना जरुर -
मानता हूँ, महसूस करता हूँ
कि -
अड़चनें सही थीं !
अड़चनें, क्यों सही थीं ?

अड़चनें सही थीं, क्यों ? किसलिए ??
क्यों, क्योंकि -
हर बार मैंने उस लड़की की ओर
बढ़ना चाहा, जिसे -
मैंने कम -
हालात ने ज्यादा सही माना, पसंद किया !!

हालात -
किसी दोस्त ने कहा !
किसी पर दया आई !
किसी ने कुछ बोल कर उकसाया !
या किसी को दिखाने के लिए !
पर, हर बार, कुछ न कुछ
ऐंसे ही हालात रहे थे !!

सबसे बड़ी बात तो ये है कि -
अड़चनें
बिलकुल तब आईं, जब
मिलने और बिछड़ने में, बिलकुल ...
चाय के भरे प्याले -
और हौंठों के बीच की दूरी -
जितनी दूरी थी !

कमोवेश,
बिलकुल इतनी ही दूरी पर
अड़चनें आईं, और आकर -
लड़कियों को -
अपने सांथ लेकर चली गईं !
हम मिले -
और मिलकर बिछड़ गए !!

अजब अड़चनें थीं
गजब अड़चनें थीं
उधर वो सोचते होंगे, इधर हम !
पर, थी सभी लड़कियाँ -
बिलकुल अड़चनों की तरह
सच ! अजब-गजब !!

( विशेष नोट - कल एक मित्र से लम्बी बात हो रही थी ... उसकी बातें सुन ... सुनकर यह एक कविता जैसी बन गई ... सोचा पोस्ट करूँ या न करूँ ... लिखने के बाद सोचा डिलीट कर दूं ... लिखने के बाद डिलीट करने की इच्छा नहीं हो पाती इसलिए ठोक रहा हूँ ... काश ! कोई दिल पे न ले !! )

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