Saturday, November 12, 2011

झनझना रहा होता ...

अपुन भी पुस्तक लिखना शुरू कर दिया हूँ पुस्तक का टाइटल है - "क्या प्यार इसी को कहते हैं ?" ... इसी पुस्तक के अंश -

" ...
प्रेम - नेहा, आज अजीब सी बेचैनी हो रही है समझ में नहीं आ रहा है कि - ऐसा क्यूँ हो रहा है !
नेहा - क्या हुआ, खुल के बता, क्या बात है !
प्रेम - क्या बात है, यही तो समझ में नहीं आ रही है !
नेहा - अरे यार, कुछ तो बता क्या बात हुई है, आई मीन क्या बेचैनी हो रही है !
प्रेम - यार दोपहर में तुम्हारी सहेली निधी, आई मीन केन्टीन में चाय पीते समय उसका हाँथ मेरे हाँथ से टकरा गया था, तब से लेकर अब तक, लगभग ढाई-तीन घंटे हो गए हैं, हाँथ का वह हिस्सा जहां उसका हाँथ टकराया था वह झनझना रहा है, और तो और मेरे दिल की धड़कनें भी तेजी से धड़क रही हैं, क्या हुआ है समझ से परे है !
नेहा - अरे बुद्धु, तू भी ... इतनी छोटी-सी बात पे झनझना रहा है, छोड़ उसे, कुछ भी नहीं है !
प्रेम - नहीं यार, तब से वही सीन बार बार याद आ रहा है, और तो और मेरे दिल को धड़का भी रहा है !
नेहा - चल फोन रख, आधा घंटे में मैं आ रही हूँ तेरे घर, तैयार रहना, आज निधी का "बर्थ डे" है उसके घर चलना है उसने तुझे भी इनवाईट किया है !

आधा घंटे के बाद निधी के पहुंचने पर ...
निधी - चल प्रेम चल चलते हैं टाईम हो गया है, मैं रस्ते में सोच रही थी कि - जब तेरा हाँथ निधी के हाँथ से टच हो जाने पर अभी तक झनझना रहा है, सोच अगर वो तेरे से लिपट गई होती तो तेरा क्या हाल होता ... अभी तू पूरा का पूरा झनझना रहा होता, आई मीन बाईव्रेट मोड में चला गया होता !
... "

2 comments:

सूर्यकान्त गुप्ता said...

झनझनाटेदार किताब की बधाई……

प्रवीण पाण्डेय said...

दिमाग़ से कोई बटन दबाना पड़ेगा यह मोड बदलने के लिये।