Wednesday, October 5, 2011

फेसबुकिया फ्रेंड ... जय हो !!

एक दिन ट्रेन में यात्रा के दौरान ... सामने वाली सीट पर दो युवा आपस में चर्चा कर रहे थे ... एक ने कहा - यार बड़े लोगों के भी भाव बड़े होते हैं ... क्या हुआ ? ... कुछ ख़ास नहीं ... फिर भी, कुछ तो बात जरुर है, बता न यार ... अरे यार "फेसबुक" पर लम्बे अर्से से जुड़ा हूँ मुझे दोस्तों की वाल पर जो फोटो या पोस्ट पसंद आती है उसे निसंकोच "लाईक" कर देता हूँ या फिर कभी कभी ज्यादा पसंद आने पर "कमेन्ट" भी ठोक देता हूँ ... ये तो अच्छी बात है, इसमें समस्या क्या है !

अरे यार समस्या इसमें नहीं है, समस्या तो ये है कि - कुछ लोग अपने आप को बहुत बड़ा "तीस-मार-खां" समझते हैं वो मेरी पोस्ट व फोटो पर कभी आकर हिलते-डुलते भी नहीं हैं आई मीन "लाईक" तक नहीं करते हैं, मुझे तो लगता है कि - बहुत घमंडी लोग हैं ... अरे यार तू भी छोटी-मोटी बातों पर संजीदा हो जाता है, ये तो आम बात है अब इसमें टेंशन लेने की क्या जरुरत है !

बात तो सही है पर अच्छा नहीं लगता यार ... अच्छा-बुरा छोड़, इसमें कर भी क्या सकते हैं, सब चलते रहता है, पर ये सही है कि - कुछ लोग अपने आप को बहुत बड़ा, आई मीन "सिलेब्रेटी या पब्लिक फिगर" समझते हैं जो अपने जैसे छोटे-मोटे फ्रेंडस को जानबूझकर अनदेखा करते हैं ... हाँ यार, गंभीर मसला है ... ( बात करते करते कुछ पल को दोनों खामोश से हो जाते हैं, यह देख-सुन कर मुझसे रहा नहीं जाता, आखिर नौसिखिया लेखक जो ठहरा, इसलिए उनके बीच में कूद पडा ) !

मित्रों आपकी चर्चा सुन रहा था, सुनते सुनते रहा नहीं गया, मुझे भी लग रहा है कि - आप दोनों की चिंता जायज है, पर ... ये "पर" क्या है भाई साहब ( दोनों एक सांथ बोल पड़े ) ... मैंने कहा - आप अपने "फेसबुकिया फ्रेंडस" के बारे में चर्चा कर रहे थे ... हाँ, हाँ ... अच्छा, मुझे एक बात बताओ - जिन्हें तुम "सिलेब्रेटी या पब्लिक फिगर" समझ रहे हो, यदि वे तुम्हारी "फ्रेंड रिक्वेस्ट" को स्वीकार नहीं करते, तब क्या करते, शायद कुछ भी नहीं !

जी हाँ, सच कहा आपने ... फिर चिंतित क्यों हो "लाईक या कमेन्ट" को लेकर, नहीं करते तो न करने दो, कम से कम वे तुम्हारी "वाल व पोस्ट" को देख-पढ़ तो रहे ही होंगे, और यदि नहीं भी देख-पढ़ रहे हैं तो भी क्या हुआ, कम से कम वे तुम्हारी "फेसबुकिया फ्रेंड लिस्ट" में तो हैं, तुम अपने आप पर गर्व तो कर ही सकते हो कि - फलां सिलेब्रेटी, फलां पब्लिक फिगर, आपका "फेसबुकिया फ्रेंड" है, देख तो रहे हो आज-कल पति-पत्नि, बाप-बेटे, और तो और बचपन के दोस्त भी आपस में एक-दूसरे से नाक-मुंह सिकोड़ के मिलते हैं ... आप महान हैं भाई साहब, आपने हमारी आँखें खोल दी, प्रणाम ... प्रणाम ... जय हो !!

3 comments:

अजित गुप्ता का कोना said...

ऐसे नजरिए से ही सुखी रहा जाता है। आधा गिलास खाली या भरा, सोचने का तरीका है।

Kailash Sharma said...

बहुत सटीक और सकारात्मक सोच..विजयदशमी की हार्दिक शुभकामनाएं !

http://batenkuchhdilkee.blogspot.com/2011/09/blog-post.html

प्रवीण पाण्डेय said...

फेसबुकिया अधिकार की सुन्दर व्याख्या।