बदलता दौर है, जिस्मानी इश्क की चमक-चौंध है
कोई बोली लगाकर, कोई तोहफे सजाकर मुरीद है !
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शहर में फैला सन्नाटा देख सन्न हो गया हूँ
हर एक दर और दीवार पे इंकलाब लिखा है !
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सच ! भले बंजर है वो, किसी की नज़रों में
न जाने क्यूं मुझे, उपजाऊ नजर आती है !
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बस्ती में खौफ,और जेहन में दहशत हुई है
सुनते हैं नेता-पुलिस की सांठ-गांठ हुई है !
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चिंदियों को मिला-जुला कर टोपी बनाई है
सच ! सुनते हैं दर्जी होनहार हुए हैं !!
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सच ! अब कोई हमसे, हमारी बातों की गारंटी न ले
कितनी मीठी, कितनी कड़वी हैं, खुद फैसला कर ले !
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किसी ने मिलने की, तो किसी ने छोड़ने की जिद की है
क्या करें, एक मोहब्बत है तो दूजी नफ़रत है !
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तेरी जी जी में तेरी जीजी याद आ गई
घर चल जल्दी पिटने की बारी आ गई !
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भरी दुपहरी में, नंगे पांव कब तक खड़े रहते
तुम आते तब तक शायद हम मर गए होते !
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क्यूं मियाँ किसे कनबुच्ची लगवा रहे हो
ख़ामो-खां भडुवों का रुतवा बढ़ा रहे हो !
2 comments:
उदया भाई, सचमुच बहुत तीखा सच परोसा है आपने।
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आप चलेंगे इस महाकुंभ में...
...मानव के लिए खतरा।
सच ! अब कोई हमसे, हमारी बातों की गारंटी न ले
कितनी मीठी, कितनी कड़वी हैं, खुद फैसला कर ले ! हा हा हा सच तो है मगर गारंटी नही……
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