Friday, August 26, 2011

'कथनी व करनी' में फर्क !

एक समय एक 'सोने की चिड़िया' के नाम से जाने जाने वाले राज्य में राक्षसों का कब्जा था तथा सभी राक्षस अपनी अपनी मर्जी से सम्पूर्ण राज्य का शोषण व जनता पर अत्याचार कर रहे थे, राज्य में बढ़ते शोषण व अत्याचार को देख कर राज्य में एक 'लंगोटीधारी बाबा' प्रगट हुए तथा उन्होंने राक्षसों को सदभाव से समझाने का प्रयास किया कि - वे जनमानस पर अत्याचार करना बंद कर दें किन्तु वे नहीं मानें और अत्याचार में बढ़ोतरी करने लगे, तब बढ़ते अत्याचार व शोषण को दूर करने के लिए 'लंगोटीधारी बाबा' ने अपनी आत्म शक्तियों के बल पर राज्य के समस्त जनमानस को अपने सांथ जोड़ लिया तथा 'घोर तप' के माध्यम से अपनी शक्तियों को विशाल रूप प्रदाय करते हुए राक्षस सेना से भिड़ गए, परिणामस्वरूप राक्षस सेना परास्त हुई तथा उन्हें राज्य को छोड़कर जाना पडा ! राक्षसों के जाते ही राज्य में जनभावनाओं के अनुरूप कुछेक प्रभावी जननायकों की नेक-नियति रूपी 'कथनी' के आधार पर 'जनतंत्र' का गठन किया गया तथा सम्पूर्ण राज्य में खुशहाली की लहर दौड़ पडी ! खुशहाली की लहर देख व 'जनतंत्र' की स्थापना के बाद 'लंगोटीधारी बाबा' अंतर्ध्यान हो गए, किन्तु यह खुशहाली की स्थिति ज्यादा समय नहीं रही और कुछ साल गुजरने के बाद ही राज्य में पुन: शोषण व अत्याचार का माहौल स्थापित हो गया, जिन जननायकों ने नेक-नियति की 'कथनी' भरी थी उनकी 'करनी' में विरोधाभाष ने जन्म ले लिया, परिणीति यह हुई कि सम्पूर्ण राज्य में शोषण व अत्याचार का राज्य स्थापित हो गया तथा जनमानस त्राहीमाम त्राहीमाम करने लगी ... किन्तु इस बार राज्य में राक्षसों की वजह से नहीं वरन अपने ही लोगों की 'कथनी व करनी' में फर्क के कारण शोषण व अत्याचार का वातावरण निर्मित हुआ था अर्थात खुद को जनतंत्र के मसीहा समझने वाले लोग कहते कुछ थे और करते कुछ थे ... अत: राज्य की जनता 'लंगोटीधारी बाबा' के 'घोर तप' रूपी आदर्श मार्ग पर चल पडी ... !!

2 comments:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

यह तो सत्य कथा है.

प्रवीण पाण्डेय said...

कथनी करनी एक रहे,
जीवन में संवेग रहे।