Monday, July 18, 2011

कल भी वो खामोश थी, आज भी खामोश है !

सच ! चलो आज फिर खुदी को आजमा लें
मौक़ा हंसी है फिर कोई एक दोस्त बना लें !
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जज्बात लेखकों के क्या खूब बिक रहे हैं
बिकवाल कोई और है, खरीददार कोई और !
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क्या खूब आए, और कब आकर चले गए
न चाहते हुए भी, हमें दीवाना बना गए !!
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किसी न किसी दिन, हम भी चुनिन्दा रचनाएं लिखेंगे
सच ! आज नहीं तो कल, जरुर सारे जग में छाएंगे !!
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बम फूटते हैं, कुछ मरते हैं, कुछ हंसते हैं, कुछ रोते हैं
कुछ मरने से बच जाते हैं, कुछ जीते - जी मर जाते हैं !
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कब तलक करते रहें हम शुक्रिया तेरा सनम
न मौत है, न जिन्दगी, हर घड़ी तेरे सितम !
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अभी मुफलिसी का दौर है जाने भी दो यारो
फिर किसी दिन, हम उन्हें भी आजमाएंगे !
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कहीं दूर सन्नाटे में सिसकियाँ ले रहा है कोई
चीखता, पुकारता, मुझे याद कर रहा है कोई !
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मौसम, रुतें, फिजाएं, सब कुछ बदल गया है 'उदय'
उफ़ ! कल भी वो खामोश थी, आज भी खामोश है !!

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

अभी मुफलिसी का दौर है जाने भी दो यारो
फिर किसी दिन, हम उन्हें भी आजमाएंगे !

बेहतरीन।