Tuesday, February 8, 2011

सच ! घोटालेबाजी के हुनर में हम फिसड्डी रह गए !!

फेसबुक पर चेहरे-पे-चेहरा लगा घूम रहे हैं लोग
सच ! बच के रहना, कोई फरेबी निकल जाए !
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कोई समझाये हमें बेहूदगी का मतलब
उफ़ ! कोई खुद को समझदार समझे है !
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मिनट
, घंटे, पहर, सारा दिन, कंप्यूटर
सच ! कोई नजर लगाए मेरे दीवाने को !
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गर तुम भी बोलोगे, पर हम जान लेंगे
सच ! हमें आता है, तेरी आँखों को पढ़ना !
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'उदय' जाने कौन सा वक्त मुकरर्र हुआ है
आपके, हमारे जज्बातों के मिलन का !
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कोई अज्ञात वास में, जाने कहाँ जा बैठा है 'उदय'
उफ़ ! मुश्किलें हमारी हैं, अब उसे ढूंढें तो कहां ढूंढें !
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सच ! अति की हदें नजर नहीं रही हैं 'उदय'
भ्रष्टाचारी सैलाब से, वतन भ्रष्टमग्न हुआ है !
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महफिलों में दोस्त-दुश्मन की पहचान मुश्किल हुई है
सच ! सब लग रहे हैं गले, जाम से जाम टकरा रहे हैं !
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अब कौन बचाए इन्हें, बददुआओं के असर से
उफ़ ! बददुआएं कहीं चमड़ी-दमड़ी गला दें !
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सच ! उर्दू की जुबां मीठी लगे है
बातें करते रहो, हम सुनते रहेंगे !
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कर के अफसोस, अब क्या मिल जाएगा 'उदय'
सच ! घोटालेबाजी के हुनर में हम फिसड्डी रह गए !!

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

सच है दुनिया वालों कि हम हैं अनाड़ी।