Saturday, September 11, 2010

... न जाने क्यूं, मैं आज जख्म पुराने कुरेदने बैठा हूँ !!!

आज मेरा यार मेरे पास से, एक अजनबी सा गुजर गया
बस खता इतनी थी कि कल, चंद रुपये उधार के जो मांगे थे

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वह सड़क पर बे-वजह सन्नाटे में खडा था
मौत का साया उसे छोड़ कब का उड़ चला था

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जाने क्यूं, मैं आज जख्म पुराने कुरेदने बैठा हूँ
जिन्हें खुद हांथों से दफ़न कर आया हूँ, उन्हें फिर क्यूं यादों में समेटने बैठा हूँ।

14 comments:

Majaal said...

वो ग़ालिब का शेर है न :
जिस्म जला है जहाँ, दिल भी जल गया होगा,
कुरेदते हो जो राख,जुस्तजू क्या है .. ?
पर मरा दिल कहाँ मानता है .. !

Udan Tashtari said...

क्या बात है!!!

संजय @ मो सम कौन... said...

@ पहला शेर:
एक पहलू यह भी हो सकता है कि उससे उधार दिये पैसे लौटाने को कहा हो आपने।

Mumukshh Ki Rachanain said...

उत्तम पोस्ट

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर जी

kshama said...

Uf! Jab ham istarah zakhm kuredne lagte hain to lahuluhaan ho jate hain...

आपका अख्तर खान अकेला said...

भाई जान क्या खूब कडुवा सच लिखा हे भाई दिल को छु गयी आपकी सच्चाई मुबारक हो. अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत खूब।

ZEAL said...

bahut sundar panktiyaan .

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

वह शानदार

अनामिका की सदायें ...... said...

सुंदर शेर मारे हैं जी.

हर पल होंठों पे बसते हो, “अनामिका” पर, . देखिए

Shah Nawaz said...

बेहतरीन!



छोटी बात:

आपकी आँखों से आंसू बह गए

ASHOK BAJAJ said...

ग्राम चौपाल में तकनीकी सुधार की वजह से आप नहीं पहुँच पा रहें है.असुविधा के खेद प्रकट करता हूँ .आपसे क्षमा प्रार्थी हूँ .वैसे भी आज पर्युषण पर्व का शुभारम्भ हुआ है ,इस नाते भी पिछले 365 दिनों में जाने-अनजाने में हुई किसी भूल या गलती से यदि आपकी भावना को ठेस पंहुचीं हो तो कृपा-पूर्वक क्षमा करने का कष्ट करेंगें .आभार


क्षमा वीरस्य भूषणं .

राजभाषा हिंदी said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति।

राष्ट्रीय व्यवहार में हिंदी को काम में लाना देश कि शीघ्र उन्नत्ति के लिए आवश्यक है।

एक वचन लेना ही होगा!, राजभाषा हिन्दी पर संगीता स्वारूप की प्रस्तुति, पधारें