अलग जगह है, ये दुनिया
जहां फ़रिश्तों को पागल कहते हैं।
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कभी तौला - कभी मासा , अजब हैं रंग फ़ितरत के
करें खुद गल्तियां, मढें इल्जाम दूजे पे ।
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क्या बताएं अब तुम्हें, क्यूं भीड में तन्हा हैं हम
दोस्तों की भीड है, पर सभी खुदगर्ज हैं ।
जहां फ़रिश्तों को पागल कहते हैं।
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कभी तौला - कभी मासा , अजब हैं रंग फ़ितरत के
करें खुद गल्तियां, मढें इल्जाम दूजे पे ।
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क्या बताएं अब तुम्हें, क्यूं भीड में तन्हा हैं हम
दोस्तों की भीड है, पर सभी खुदगर्ज हैं ।
7 comments:
बहुत खूब....
अरे अरे हम तो कुछ और समझ बैठे थे हेडिन्ग देख कर। चलिये कोई बात नही पर क्या शेर मारा है! सुन्दर्।
कभी तौला - कभी मासा , अजब हैं रंग फ़ितरत के
करें खुद गल्तियां, मढें इल्जाम दूजे पे ।
-वाह! क्या बात कही है!!
वाह ! ! ! वाह ! ! !
बहुत खूब ।
....बहुत खूब, लाजबाब !
आईये जानें .... मन क्या है!
आचार्य जी
दोस्तों की भीड है, पर सभी खुदगर्ज हैं ।
सही कहा..सुंदर रचना
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