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इस भीड में, कहां अपनी 'हस्ती' है
जहां देखो, वहां 'मौका परस्ती' है।
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इस भीड में, कहां अपनी 'हस्ती' है
जहां देखो, वहां 'मौका परस्ती' है।
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9 comments:
बहुत सटीक शेर!
उदय की अपनी ही अलग बस्ती है
जिसमें हमारे जैसा को दिल नस्ती है।
छोटा शेर... बड़ी बात।
सही लिखा है ।
इस भीड में, कहां अपनी 'हस्ती' है
जहां देखो, वहां 'मौका परस्ती' है।
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तुम्हारी प्रतिभा देख कर लगे,
शायरी तुम्हारे भीतर बसती है.
अच्छा शेर...कभी मुकम्मल ग़ज़ल का आस्वादन भी मिले.
Yah kamal ka fan haasil hai aapko..chand alfaaz aur bahut kah jana...!
आप से सहमत है जी
अंकल मुझे आपके शेर अच्छे लगते हैं।
तीन चार शेर के बच्चे मुझे चाहिये मै उनको घर मे पालूंगा।
इस भीड में, कहां अपनी 'हस्ती' है
जहां देखो, वहां 'मौका परस्ती' है।
....bahut hi badhiyaa sher.aapke sher kaafi acche hite hain, yadi sher ko saparivaar baccho sahit laaye to our bhi acchaa lagegaa...
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