कभी इस पार, कभी उस पार
बता आख़िर ... ... ...
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कहीं भी आग दिखती नहीं यारा
न जाने ये धुंआ उट्ठा कहाँ से है
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किसे अपना कहें , किसे बेगाना
सफर में तो सभी, हमसफ़र हैं 'उदय'
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तेरा पतलून की जेबों को खामों-खां टटोलना अच्छा लगा
पैसे क्यों दे दिए 'जनाब', बाद में ये पूंछ लेना भी अच्छा लगा
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मोहब्बत में जीने-मरने की क़समें खाते हैं सभी
पर दस्तूर है ऐसा , कोई जी नहीं - तो कोई मर नहीं पाता