Tuesday, May 13, 2014

सच्ची-झूठी ...

इस दफे, उन्ने, मुस्कुराया है जरा हट के
कहीं ये कयामत की आहट तो नहीं ???

सरकार तो बननी ही है 'उदय'
अब,… सच्ची बने या झूठी ?

कौन हारेगा - कौन जीतेगा, अब ये तो वक्त ही बतायेगा 'उदय'
पर, बता दिया है उसने कि भले 'आम' सही पर 'आदमी' तो है ?
हमें बागी कहो, या इंकलाबी, तुम्हारी मर्जी
पर …… हमारे इरादे बदलने वाले नहीं हैं ?
अभी तक उन्ने गंगा को प्रणाम नहीं किया है 'उदय'
जो कल तक, …… पूजा-औ-आरती को बेताब थे ?

1 comment:

सुशील कुमार जोशी said...

हा हा आगे आगे देखिये अभी :)