खुदा जानता है या फिर तुम, गहराई प्यार की
वर्ना, सुनते तो यही हैं कि बहुत डूबते डूबते बचे हैं ?
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अब तू खामों-खां इल्जाम मत लगा
आँखों से, छेड़-छाड़ होती है कभी ?
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क़त्ल हो जाए और आह भी न निकले
कुछ ऐंसी हैं 'उदय', ... अदाएँ उसकी !
1 comment:
badhiyaa!!
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