सुबह सुबह -
अपने पी.ए. पर भड़क गए !
खरी-खोटी सुन, पी.ए. सन्न रह गया
भड़कने का सबब जानने को
वह बड़ा बेचैन हो गया !
हुआ क्या है, कहाँ से ये तूफ़ान आया है
आया तो आया, ठीक है
पर मुझ पे ही क्यूँ ?
पूरा जिला साहब का है
किसी को भी बुला कर भड़क लेते !
पी.ए. बेचारा क्या कहता
आखिर, साहब तो साहब होते हैं !
वह दिमाग ठंडा होने का इंतज़ार करने लगा
आखिर, पी.ए. और साहब का
सुबह से शाम तक -
चोली-दामन सा सांथ जो होता है !
मौक़ा मिलते ही पी.ए.
नाक-मुंह सिकोड़ते हुए पहुंचा !
साहब देखते ही समझ गए, बोले -
तुझपे गुस्सा न होऊँ
तो तू ही बता किस पे होऊँ !
मेरा क्या कुसूर हुआ माई-बाप, जो
सुबह सुबह आप मुझपे बरस पड़े
फोन कर देते, हिंट दे देते
दो-चार अफसरों को बुला के रख लेता !
कम से कम इस नाचीज को तो बख्श देते
पी.ए. हूँ साहब, कोई ऐरा-खैरा नहीं हूँ !
साहब बोले - न्यूज पेपर्स उठा के ला
दिखा - किसी भी फ्रंट पेज पे
कहीं भी, मेरा नाम या फोटो है ?
जी, नहीं है हुजूर !
अब अन्दर देख -
क्या वहां कुछ अपना नामो-निशान है ?
जी, नहीं है हुजूर !
तो अब ये बता, तुझपे भडकूँ
या किसी और पे भडकूँ ?
जी, हुजूर, माई-बाप, समझ गया
भूल गया था, आपका मर्ज -
और दबा-दारु भी !
पर, अब आईन्दा से ...
मुझसे, ये गुस्ताखी नहीं होगी
जिले में कुछ हो या न हो
पर आपके -
छपने में कोई ढील नहीं होगी !!
मुझसे, ये गुस्ताखी नहीं होगी
जिले में कुछ हो या न हो
पर आपके -
छपने में कोई ढील नहीं होगी !!
2 comments:
vaah mza a gyaa jnaab .akhtar khan akela kota rajshtan
तो आग इसलिये लगी थी।
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