Friday, October 23, 2009

शेर

कभी इस पार, कभी उस पार
बता आख़िर ... ... ...
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कहीं भी आग दिखती नहीं यारा
न जाने ये धुंआ उट्ठा कहाँ से है
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किसे अपना कहें , किसे बेगाना
सफर में तो सभी, हमसफ़र हैं 'उदय'
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तेरा पतलून की जेबों को खामों-खां टटोलना अच्छा लगा
पैसे क्यों दे दिए 'जनाब', बाद में ये पूंछ लेना भी अच्छा लगा
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मोहब्बत में जीने-मरने की क़समें खाते हैं सभी
पर दस्तूर है ऐसा , कोई जी नहीं - तो कोई मर नहीं पाता

10 comments:

रश्मि प्रभा... said...

किसे अपना कहें , किसे बेगाना
सफर में तो सभी, हमसफ़र हैं 'उदय'
waah

राज भाटिय़ा said...

तेरा पतलून की जेबों को खामों-खां टटोलना अच्छा लगा
पैसे क्यों दे दिए 'जनाब', बाद में ये पूंछ लेना भी अच्छा लगा
वाह वाह वाह वाह

Mumukshh Ki Rachanain said...

किसे अपना कहें , किसे बेगाना
सफर में तो सभी, हमसफ़र हैं 'उदय'

बढ़िया है भाई............
पर यही हम सफ़र साथ कम धोखे ज्यादा देते हुए मिलने लगे हाँ आजकल...........

बधाई.

चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

aapke sher bahut badhiya lage....

likhte rahiye.......

दिगम्बर नासवा said...

मोहब्बत में जीने-मरने की क़समें खाते हैं सभी
पर दस्तूर है ऐसा , कोई जी नहीं - तो कोई मर नहीं पाता

AAPKE SHER HAKEEKAT KE BAHOOT KAREEB HOTE HAIN .... SAB KE SAB SHER LAJAWAAB HAIN ...

mark rai said...

कहीं भी आग दिखती नहीं यारा
न जाने ये धुंआ उट्ठा कहाँ से है.....
bahut sunder....

संजय भास्‍कर said...

सुन्दर गजल पढ़वाने के लिए आभार

BrijmohanShrivastava said...

कोई जी नही तो कोई मर नही पाता ,पैसे वाला व्यंग्य ।सही है न यहां कोई अपना है न बेगाना ।भलेही दिखती न हो मगर आग होगी जरूर ,क्योंकि बिना आग के धुंआ होता नही है,अभी तक तो सब यही कहते हैं आगे का पता नही

Murari Pareek said...

ek ek sher umdaa hain!!!

संजय भास्‍कर said...

LAJWAAB