Wednesday, February 6, 2013

शर्त ...


कहीं कुछ होता तो कब का छलक गया होता 
वैसे, सबाब-ए-हुस्न छिपाए छिपता कहाँ है ? 
... 
उन्हें, न भूलने का वादा तोड़ रहा हूँ 'उदय' 
क्यों ? ... अब,... बस,... खुदा हाफिज !!
... 
पग हमारे, कभी पगडंडी से बाहर नहीं जाते 
औ घर उनका 'उदय', एक्सप्रेस हाईवे पे है ? 
... 
लिखने को तो 'उदय', वो तीन-सौ पेज में वही बात लिखते हैं 
जिसे हम, दो-चार लाइनों में...... निचोड़ के समेट देते हैं ??
... 
खुद लिखूँ, ............ या तुझे पढूँ 
बता, मुहब्बत में क्या शर्त है तेरी ? 
... 
देखने-देखने का, हर एक का अपना-अपना नजरिया है 
वही कविता, वही दोहा, तो वही.... कहीं शेर है 'उदय' ? 

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