शेर - 65
‘मसीहे’ की तलाश में दर-दर भटकते फिरे
‘मसीहा’ जब मिला, तो अपने अन्दर ही मिला।
शेर - 64
हो शाम ऎसी कि तन्हाई न हो
मिले जब मोहब्बत तो रुसवाई न हो।
शेर - 63
प्यार हो, तो दूरियाँ अच्छी नहीं
दुश्मनी हो, तो फिर दोस्ती अच्छी नहीं।
शेर - 62
सत्य के पथ पर, अब कोई राही नहीं है
गाँधी के वतन में, अब कोई गाँधी नहीं है ।
शेर - 61
मेरी महफिल में तुम आये, आदाब करता हूँ
कटे ये शाम जन्नत सी, यही फरियाद करता हूँ ।
7 comments:
बहुत खुब्सूरत रचना है.........
वाह क्या बात है , बहुत सुंदर लिखा आप ने .
phir kuchh behtarin sher padhne ko mila
jannat ke liye
bhatke
jeevan bhar
jannatnasheen
hokar bhee jannat
naseeb nahin
‘मसीहे’ की तलाश में दर-दर भटकते फिरे
‘मसीहा’ जब मिला, तो अपने अन्दर ही मिला।
Bahut khub.
‘मसीहे’ की तलाश में दर-दर भटकते फिरे
‘मसीहा’ जब मिला, तो अपने अन्दर ही मिला।
वाह.......दिल में झाँक कर तो देख..............
बहुत ख़ूबसूरत रचना है!
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